# # # #
बता रहे है
अवशेष
पुकार कर
मुझ को,
हुआ करता था
यहीं पर
कोई घर
बसा हुआ...
पीड़ा थी
विवशता
मेरे रुंधे हुए
रुदन की,
आंसुओं के
प्रवाह में
ना जाने
क्या था
फंसा हुआ...
मिल गयी है
भाषा
मेरे मौन को
तुम्ही से,
होता था
मेरे बोलों पर
कोई बंधन
कसा हुआ.....
आलोकित
दस दिशाएँ
तेरे आगमन से
हुआ करता था
तिमिर गहरा
नयनों में
धंसा हुआ...
अवशेष
पुकार कर
मुझ को,
हुआ करता था
यहीं पर
कोई घर
बसा हुआ...
पीड़ा थी
विवशता
मेरे रुंधे हुए
रुदन की,
आंसुओं के
प्रवाह में
ना जाने
क्या था
फंसा हुआ...
मिल गयी है
भाषा
मेरे मौन को
तुम्ही से,
होता था
मेरे बोलों पर
कोई बंधन
कसा हुआ.....
आलोकित
दस दिशाएँ
तेरे आगमन से
हुआ करता था
तिमिर गहरा
नयनों में
धंसा हुआ...
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