Thursday, September 20, 2012

क़र्ज़ था किसी जन्म का,...


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था  सफ़र 
अँधेरी रात का, 
ना चाँद था 
ना तारा था, 
बिछोह का 
सागर नहीं,
ना मिलन का 
किनारा था, 
क़र्ज़ था 
किसी जन्म का,
चुक गया
सच है यही,
ना हम कभी 
तुम्हारे थे, 
ना तू कभी 
हमारा था....

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