Friday, August 1, 2014

शैय्या से शमशान तक (अंकित जी की रचना)

शैय्या से शमशान तक (अंकित जी की रचना)
(अंकितजी मेरी आपा नायेदाजी के खाविंद है, दोनों का रिश्ता एक उदाहरण है..उनका जुड़ाव प्रत्येक बात में है सांसारिक, साहित्यिक, अध्यात्मिक...दोनों अभिन्न मित्रों ने एक दूसरे को बढाया है, संवारा है..आज उनकी एक रचना आप से शेयर कर रही हूँ...जो हम लिखनेवालों के लिए प्रेरणा हो सकती है )
# # #

जीवन,
एक साँझा नाटक,
देह और आत्मा का,
जिसे खेल रहें है
हम सब,
संसार के,
विशाल
वृहत
रंग मंच पर..........

मैंने,
अपनी रचनाओं में,
शैय्या के सुख़
पाने या ना पाने की
बातें की
अथवा
मंजिल बनाया
शमशान को,
मेरी हर
ख़ुशी और
गम बस रहे
भटकते
शैय्या से
शमशान तक......

क्यों
ना जाना
हे प्रभो!
जीवन कुछ और है
वासना और
मृत्यु के
सिवा............

क्यों भूल गया में,
हे विभो !
जन्म को
प्रेम को,
सौहार्द को,
हर्ष को,
आनंद को,
शक्ति को,
मुक्ति को,
तृप्ति को,
प्रकृति को,
गीत को,
संगीत को,
अगणित तथ्यों को,
जीवन के सत्यों को,
तुम को,
स्वयं को...............

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