Friday, August 1, 2014

याद आने लगे : नायेदा और अंकित

याद आने लगे : नायेदा और अंकित

(यह दो-गाना मेरी आपा और जीजू की शुरुआत की पेशकश है जो उन्होंने किसी वक़्त मिल कर लिखी थी..दशकों बाद मैंने आज इसे फिर से पढ़ा और सुग्राह्य करने के लिए मूल भावों को डिस्टर्ब किये बिना थोडा सा अल्फाज़ का हेर-फेर किया है उनकी इज़ाज़त से. आप से शेयर करते हुए ख़ुशी हो रही है)

आप क्यों /हम को याद आने लगे
आँख नम हो आई
खुद को हम/ भरमाने लगे.

अक्स तुम्हारा/हर लमहे देखा हमने
जुदा हो कर भी
हम इस तरहा/ मुस्कुराने लगे.

खुली आँखों में/ ख्वाबों ने दिये डेरे
पलक झपकेंगे कैसे
नींदों से भी/घबराने लगे.

हर सांस गाती है/ तराने तेरे
धुन को सहलाते हुए
साजों को हम/ बजाने लगे.

बेदर्दी ना है प्रीतम/ जाने है दिल मेरा
सब बिसरा के हम
खुद को भी/बहकाने लगे.

एक मिटटी को /बांटा है खुदा ने/ मेरी जाँ
जान फूंकी जो
कदम सबके यूँ /लड़खड़ाने लगे.

अल्फाज़- किताबें / भूल गये हम तो
बस आप है इल्म मेरे
रीझे किस्मत पे/ और इतराने लगे.

हाथ में हाथ दिया था/ जिस पल तूने
गूंगे थे तब तलक हम
फिर से नग्मात/गुनगुनाने लगे.

सहर का तारा/लुभाने लगा हम को
आप आयेंगे महरबां
महफ़िल / हम सजाने लगे.

प्यार हमारा हर पल/ बढ़ता ही रहे
एक जाँ दो जिस्म
परिंदों से /चहचहाने लगे.

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