Friday, August 1, 2014

अभिज्ञान सत्य का....(नायेदा आपा)

अभिज्ञान सत्य का....(नायेदा आपा)


Koran is more a book to be sung than a book to be read. The Koran was not written by a scholar or a philosopher. This is a direct verse from the God, a message to the humanity from the God. Koran has its great rhythm which can only be felt by involving in its sweetness. This poem is one ‘essence’ which I gathered while being with the Koran.

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सुनना
वही
होता है
सटीक
जिसमे होता है
ध्यान
अर्थ का
और
होती हो
तत्परता
स्वीकारने
विवेकशील
तथ्यों को....

अकारण
विरोध और
तर्क
का नहीं
प्रयोजन
पाने हेतु
अभिज्ञान
सत्य का....

यदि
में घड़
रहा हूँ
झूठ
तो होऊंगा
मैं ही
अपने कर्म का
उत्तरदायी,
ना होगा
तुम पर
दायित्व
किंचित
उसका...

यदि तुम
रहे हो
झुठला
सत्य को तो
क्षय है
उसमें
मात्र
तुम्हारा,
ना कि
मेरा...

(बात वेद पर हुई तो कोरान पर भी हो....नायेदा आपा मुस्लिम परिवार में पैदा हुई, हिन्दू से प्रेम विवाह किया, जैन बौध,इसाई दर्शन का भी अध्ययन किया...नास्तिकों की बातों को भी पढ़ा गुना...उनके लिखे में सार आता है सकारात्मक बातों का...शेयर करने से नहीं रोक पायी, इसलिए पोस्ट कर रही हूँ...महक नाम बार बार जाता है यह संयोग है..मुझे शौक नहीं....महक अब्दुल्लाह )

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