Thursday, November 11, 2010

एक विनती : प्रभु से -मौला से:नायेदा आपा रचित

(चातुर्मास व्रत त्यौहार और भक्ति का काल होता है......लगभग सभी परम्पराओं में हिन्दू, बौध, जैन और मुस्लिम......जन्माष्ठमी, अंनंत चतुर्दशी,शरद नवरात्रा, रमजान,पर्युषण-समवत्सरी, दस लक्षण आदि........तो एक छोटी सी प्रार्थना प्रभु से, मौला से.)
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यह मेरी जिंदगी,प्रभो !
किस मोड़ पर खड़ी है
मंझधार में है नैया
सर पर आफतें खड़ी है...

धुल बेपयाँ इस पर
ज़माने ने जमा दी है
निशान उंगली के कहीं हैं
खरोंचे भी लगा दी है....

वक़्त के थपेड़ों ने
धुन्धला इसे बनाया है
सुहाती है ना रोशनी
अक्स बेनूर हो आया है....

बने फिरतें हैं चारागर
जाल फरेबों का बिछाया है,
दे-दे मरहम-ए-जख्म मौला !
तेरा ही बस इक साया है...

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