Tuesday, November 16, 2010

गणना. : नायेदा आपा की रचना

# # #
सुशिष्य
बुद्ध का,
भिख्खु एक
परम विद्वान्,
ज्ञाता
व्याकरण का,
सूत्रों का,
मन्त्रों का......

कुशल कवि,
प्रकांड पंडित,
शब्द विशारद
देता था उपदेश
अपनी
औजस्वी वाणी
लुभावनी
शैली में,
हुआ करता था
इकठ्ठा मजमा
और
होते थे आनन्दित
जन-जन
सुन कर
भिख्खु के
प्रभावशाली
धर्मोपदेशों को,
पर
ना जाने क्यों
नहीं होता था
घटित
परिवर्तन
कहीं भी,
भिख्खु था
प्रसन्न
गिन कर
श्रोताओं को,
लख कर
बेतहाशा भीड़ को....

देखा करते थे
गौतम सबकुछ
शांत चित्त से,
बुलाया था
तथागत ने
एक दिन
भिख्खु को और
कहा कहा था
कुछ यूँ,
भंते ! करके
गणना
मार्ग पर
दृष्टव्य
धेनुओं की,
क्या हो सकता है
कोई
स्वामी उनका....?
होना है
राज्य धम्म का
मनुज हृदयों पर,
चित्कार
'धम्मम' 'धम्मम' की
बढा सकती है
मात्र संख्या
दर्शकों की ,
नहीं पैठ सकती
किन्तु
मानव मस्तिष्क
एवम्
हृदयों में...
भिख्खु !
करो आत्मसात
तुम
धम्मम को,
करो अवतरित
उसे जीवन में अपने
परे शब्दों से,
लेगा तभी
जन-मानस
सच्ची प्रेरणा
और
होगी संपूर्ण
तुम्हारी देशना...

No comments:

Post a Comment