Saturday, November 20, 2010

बात एक रात : by नायेदा आपा

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छोडो ना कहो ये नज़्म-ओ-ग़ज़ल , यह शब तो यूँ ही गुज़र जाएगी,
चुप बैठ के देखो नयनन में, ये रात सुहानी ठहर जाएगी...

गम के फ़साने सुनाते हो क्यूँ , अंखियन अश्कों से भर जाएगी,
बंजारिन सी फ़ित्रत है मेरी, सरो-सुबहा उठी और चली जाएगी.

रातों का क्या यूँ ही बीत जाये, सूरज के संग कल तो सहर आएगी,
तूफ़ान मस्ती के उठे दिल में , पर मिलन-घड़ी किस पहर आएगी

मेरे जानिब आहिस्ता आहिस्ता बढ़ो , खुदा की खुदाई भी दर जाएगी,
कुचलो ना फूलों को जो बिछे सेज पर, नाज़ुक पत्तियां है बिखर जाएगी.

मानते हैं सनम दरिया उफना, फिर फिर के हर इक तो लहर जाएगी,
फल धीरज के होते मधुर सजन, जल्दी में बात बिगड़ जाएगी.

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