Saturday, November 13, 2010

दिल की सच्चाई : एक अंदाज़े मोहब्बत -- by नायेदा आपा

(मेरी एक अन्तरंग सहेली फोर्मल तालीम नहीं के बराबर पा सकी. उसकी निकाह एक ऐसे आदमी के साथ हुई जो बाहिर मुल्क से बहुत कुछ तालीम और इल्म हासिल कर के आया. वह, एक नेक और जहीन इन्सान है, अपने वर्क फील्ड में बहुत ही कामयाब है, एक जिम्मेदार औलाद, खाविंद, बाप, दोस्त और शहरी है..........उसके लिखे ड्रामे पाकिस्तान टीवी चेनल्स पर कई दफा एयर हो चुकें हैं, उसके लिखे गीतों में भी कशिश,रवानी और गहराई
है. वे लोग एक 'सुखी और सम्पूर्ण' दम्पति है. मुझे अपनी दोस्त को खुश पा कर बेहद ख़ुशी होती है. उससे हुई अन्तरंग बातों को मैंने इस नज़्म में ढालने की कोशिश की है...........जिंदगी की यह सच्चाई शायद कईओं के दिल छू सके.)

# # #
वो मेरा दोस्त है,
मेरा हमदम,
मेरा खुदा,
मैं भी उसकी दोस्त,
हमदम-ओ-खुदा हूँ.

बनाया, सजाया
और संवारा है
खुदा के करम से
हमने
अपने ख्वाबों की
दुनिया को
इन चार हाथों से.....

मैं समझ ना पाती
बहुत सी उसकी बातों को,
और ना ही ज़रुरत है
समझने की उनको,
मुझे तो लगता है
बस अच्छा
देखना उसे बोलते हुए,
छूता है मेरे दिल को
अंदाज़-ए-बयां
और
लहजा उसका...

आँखों की जुबां उसकी,
समझती हूँ महज़ मैं ही,
दुनिया उसे पढ़े सराहे,
यह खुशकिस्मती है 'हमारी'
सुकूं भरी इस तरहा
जिंदगानी है हमारी...

उसका सबसे बड़ा नाविल,ड्रामा,
गीत, ग़ज़ल और कहानी
बात है वोह
हमारे गाँव के खेतों की,
जिसे वोह अपने उसी..
ना ना उससे बेहतर,
अंदाज़ में कहता है...बार बार.
जिंदगी एक मुरब्बा(खेत) है,
हम दोनों जिमिन्दार(किसान),
मैं चला रहा हूँ हल
और बिखेरे जा रही हो
बीजों को तुम,
मैं बांधे अंगौछा
कमर पर,
कर रहा हूँ निराई,
बंटा रही हो हाथ तुम मेरा
और गाये जा रहे हैं
संग संग 'हीर'
मैं और तुम...
झूम रहा है मानो यह
आलम सारा,
यह लहलहाती फसलें,
सुनहली फूली सरसों,
हरे बूटे,
वो झेलम का किनारा,
ज़िन्दगी यह अपनी नहीं तो
क्या है...

इन्सान कहीं भी होकर आ जाये,
कुछ भी बन जाये,
अपने जमीं, अपनी माटी की,
जो सचाई सदियों से है कायम,
उसे कैसे झुटला सकता है कोई,
जिंदगी के खेतों में,
प्लास्टिक के बीज
कैसे बो सकता है कोई...

जब जब होता है
वो किसी उलझन में,
सुलझाता है उसको
आकर मेरे बाहों में,
जवाब कठिन से कठिन सवालों के
पा जाता है मेरी पनाहों में,
उसकी हर नज़्म की
पहली तनकीद
होती है मेरी,
उसके हर शे'र की
पहली दाद भी
हुआ करती है मेरी,
मेरी आँखों में उसकी हर ,
ग़ज़ल बसती है,
क्या हुआ महफ़िल में,
तालियाँ
औरों
की बजती है....

मेरे साथ चाय का एक गरम प्याला
देता है उसको-मुझको
नयी जिंदगी,
घर का बना खाना,
नन्हों का साथ,
फुरसत के सुबहा शाम,
और सांझी बंदगी.....
होती है अलावा इसके भी जो दुनिया,
क्या नहीं है हमें वोह भी मुहैया ?
खुश रहना,
हंसना हँसाना
हमारी फ़ित्रत है,
हमारे लिए यही है जन्नत,
यही कुदरत है....

रिश्तों को 'रिलेशनशिप'कहतें है,
मैंने अब जाना.......
'गोइंग अराउंड'
और 'ब्रेक ऑफ' के मायनों को भी
पहचाना,
'लोंगिंग' की छोटी लम्बाई को भी नापा,
लफ्जों की इस नुमायश की गहराई को भी
मैंने मापा,
दिल से पढ़ा...
दिल से जाना...
दिल से माना,
जिंदगी का कुछ भी भेद
ना रह गया
अब अनजाना
जीने के लिए जरूरी है
सांसो का आना ओ' जाना,
गिनने वालों का
छोटा होता है जमाना.
मुझे किसी दरवेश की
इस बात में है हासिल है
बेंतेहा 'जोय'
ढाई आखर प्रेम का
पढ़े सो पंडित होय...

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