Monday, May 2, 2011

दो कदम -(नायेदा आपा द्वारा रचित )

(इसका देवनागरीकरण मुदिता दी ने किया, मतले का पहला मिसरा मैंने याने महक ने दिया है..नायदा आपा का ओरिजिनल शे'र नेक्स्ट है)
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मिटे क़दमों का फासला के कोई साथ चले
दो कदम तुम ना चले दो कदम हम ना चले.

(फासला चंद क़दमों ही का था मेरे हमनशीं
दो कदम तुम ना चले दो कदम हम ना चले.)*

दामन-ए-वक़्त डूबता था गरम अश्कों में
मेरे दिन यूँ ही ढले- रातें मेरी यूँ ही ढले.

दिल के अरमान खामोश सी दस्तकें देते ही रहे
लबों के बंद दरवाजे हम से हरगिज़ ना खुले.

मासूम ख़्वाबों की थी वो बे-ज़ुबां चाहत
सांसों के हिंडोले में झूले और नाजों से पाले.

गरूर-ए-हुस्न मेरा वो इश्किया दीवानगी तेरी
तारीकियों में बस हसरतों की शम्में जले.

काश! सुन लेते मेरी धड़कनों की थकी सी सदा
अब आलम है या रब! हम तेरी दुनिया से चले.

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