Thursday, February 2, 2012

प्रतिपादन.....

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प्रतिपादन
अलग विलग के
हो जाते हैं व्यर्थ,
पहचान पाते हैं
वस्तुतः
जिस क्षण
अस्तित्व हमारा है
एक कण नन्हा सा
विराट अस्तित्व का ......

शब्द ब्रह्म है
शब्द स्वयं है
शब्द सत्य है
शब्द ही असत्य
शायद इसीलिए
शब्दों के ये जाल
भटका देते हैं
हमें बार बार
हमारे अपने ही
जंगल में
और
देने लगते हैं हम
भाषा में मढ़े
निज अहम् को
नाम ब्रहम का...

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