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भेद समझ पाना
कठिन है
नित्य का
अनित्य का
सापेक्ष है
निर्वचन
सत्य का
असत्य का...
विकास सूर्य का
मापा जाता
धूप से भी
छाँव से भी,
जीवन की
पहचान होती
मरघट से भी
गाँव से भी.....
गिर गये हो तुम
अर्थात
पूर्व इसके
तुम खड़े थे
पिघल गये हो तुम
निश्चित पहले
तुम कड़े थे....
जो स्थित
उच्च पर
है सम्भावना
उसके पतन की,
जो गिर पडा
वह उठ सके
यह प्रेरणा
होती गगन की...
हार अपनी जगह
जीत का एक
दांव भी है,
दूरी का पैमाना
साथी !
लक्ष्य भी है
पांव भी है....
साकार
स्वयं बन जाता है
प्रतिबिम्ब
निराकार का,
किसलिए तू
चिंतन करता
समर्थन का
प्रतिकार का...
Sunday, February 12, 2012
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