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पहुँचने गंतव्य तक
चलना ही होगा
हमको
पकड़ कर
कोई राह,
बिसरा कर
अहम् का चिंतन,
दौड़ी आती है
नदियाँ
चल कर
अपनी ही राह ,
देता है कब
जलधि उनको
मार्गचित्र
और
आमंत्रण.....
Sunday, February 12, 2012
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