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करता है
उपक्रम
जाने का ऊपर
ज्योति से
कृतघ्न धुंवा
किन्तु नहीं
देता शरण
विशाल
नील-नीरभ्र गगन
इस कुलकलंकी को.....
औदार्य है
यह तो
समदर्शी लौ का
बना देती है जो
इस आँख फोड़े को
रूपसी के
नयनों का
काजल.....
(औदार्य=उदारता, रूपसी=सुंदरी, कृतघ्न=नाशुक्रा, उपक्रम=प्रयास)
karta hai
upkram
jane ka upar
jyoti se
kritghan dhuan
kintu nahin deta
sharan
vishal
neel-nirabhr gagan
is kulkalanki ko......
Aaudarya hai
yah to
samdarshi lau ka
bana deti hai jo
is aankh-fode ko
rupasi ke
nayanon ka
kajal.
(aaudarya=udarta, rupasi=sundari, kritghan=nashukra upkram=prayas)
Saturday, November 21, 2009
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