# # #
गूंजे हैं
मदमस्त भँवरे
पराग भरे पूरे
मदहोश
चमन में,
बोले प्यासे चातक
गाये है कोयलिया....
रोमांचित पल्लवित
हरे उपवन में,
टेसू कुसुम हँसे
मधुवन में
यहाँ वहां सब जहाँ
रौनक बढाई के,
हिया छुई छुई
भागे
मदन मतवाला
तन के कमान ऊपर
तीर चढ़ाई के,
महकी महकी मादक
पवन बहे
मोज में
मगन सी,
दिल में जगावे
दुश्मन
तपिश
अगन सी,
मेरे मनाये
मानेगा ना
प्रीतम हटीला
ऐ ! बसंत
तेरा यार है
बड़ा बादीला....
कहदे तनिक
जाके उसे
संदेसा इस
विरहन
गौरी को,
सूखो सूखो
ना निकर जावे
तिव्हार
होरी को.....
('बादीला' का शाब्दिक अर्थ हठीला, बांका, जिद्दी या दृढ से होता है,राजस्थान में प्रेमिकाएं/संगिनियाँ प्यार से 'बादीला' 'हठीला' कहकर प्रीतम को बुलाती है )
Sunday, February 28, 2010
Saturday, February 27, 2010
रंग, रस, लय !
# # #
खिंची जा सकती है
लकीरें
पत्थर पर
बनाने
कोई चेहरा
(मगर)
बिना रंगों के
नहीं होगी
तस्वीर जिन्दा.....
की जा सकती है
इकठ्ठा
भीड़ अल्फाज़ की
(मगर)
बिना ज़ज्बात-ओ-मायने
नहीं होगी
ग़ज़ल जिंदा.....
जोड़े जा सकते हैं
तुक मुकम्मल
(मगर)
दिल में ना हो
साज़-ओ-मोसिकी
नहीं होगा
नगमा जिंदा.....
खिंची जा सकती है
लकीरें
पत्थर पर
बनाने
कोई चेहरा
(मगर)
बिना रंगों के
नहीं होगी
तस्वीर जिन्दा.....
की जा सकती है
इकठ्ठा
भीड़ अल्फाज़ की
(मगर)
बिना ज़ज्बात-ओ-मायने
नहीं होगी
ग़ज़ल जिंदा.....
जोड़े जा सकते हैं
तुक मुकम्मल
(मगर)
दिल में ना हो
साज़-ओ-मोसिकी
नहीं होगा
नगमा जिंदा.....
Friday, February 26, 2010
दिनरात (९) : दिन की रोटी
# # #
तवा अँधेरा,
सितारे अंगारे,
आसमां है
अंगीठी
वक़्त
सेक रहा
उस पर
जैसे
दिन की
महकती
रोटी........
तवा अँधेरा,
सितारे अंगारे,
आसमां है
अंगीठी
वक़्त
सेक रहा
उस पर
जैसे
दिन की
महकती
रोटी........
Wednesday, February 24, 2010
दिनरात(८) : चपत..........
# # #
हर रात
'दुनिया' से
बड़े घर में,
घुस आता है
ज़बरदस्ती
बाहुबली
अँधेरा,
रुकता नहीं
ज़ालिम
रोकने और
टोकने से,
मगर
दिया-
एक बच्चा
नन्हा सा
घर का ,
लगा के चपत
लौ की,
मिटा देता है
उसको
करीने से....
हर रात
'दुनिया' से
बड़े घर में,
घुस आता है
ज़बरदस्ती
बाहुबली
अँधेरा,
रुकता नहीं
ज़ालिम
रोकने और
टोकने से,
मगर
दिया-
एक बच्चा
नन्हा सा
घर का ,
लगा के चपत
लौ की,
मिटा देता है
उसको
करीने से....
Tuesday, February 23, 2010
पिया सी......
# # #
अरमानों का
सबब
कुछ ऐसा रहा
'महक',
पानी में
रह कर भी
मीन
पियासी रही,
लपकने को
चाहता है
हर रंग
यह दिल
हर शै
कायनात की
पिया सी रही......
अरमानों का
सबब
कुछ ऐसा रहा
'महक',
पानी में
रह कर भी
मीन
पियासी रही,
लपकने को
चाहता है
हर रंग
यह दिल
हर शै
कायनात की
पिया सी रही......
दिनरात (७) : हिज्जे सितारों जैसे
# # #
किसी मासूम
बच्चे ने
लेकर चाक
दूज के चाँद की
लिख दिए हैं
अँधेरे की
काली
स्लेट पर
हिज्जे
सितारों जैसे.......
किसी मासूम
बच्चे ने
लेकर चाक
दूज के चाँद की
लिख दिए हैं
अँधेरे की
काली
स्लेट पर
हिज्जे
सितारों जैसे.......
Sunday, February 21, 2010
दिनरात श्रृंखला (६) : दीया परम अवतारी
# # #
जन्मा
माटी की
कोख से,
दीया
परम
अवतारी.......!
बाण
किरणों के
निकाले
लौ तरकश से,
रात ताड़का
मारी.........!!
जन्मा
माटी की
कोख से,
दीया
परम
अवतारी.......!
बाण
किरणों के
निकाले
लौ तरकश से,
रात ताड़का
मारी.........!!
Saturday, February 20, 2010
दिन रात ( ४) : भगत विभीषण तारे
# # #
जन्मे
तम : रावण के कुल में
भगत विभीषण
तारे,
होते देख उजास
दिवस का
मिले
सूरज संग
सारे.......
जन्मे
तम : रावण के कुल में
भगत विभीषण
तारे,
होते देख उजास
दिवस का
मिले
सूरज संग
सारे.......
Friday, February 19, 2010
दिन रात : एक श्रृंखला (द्वितीय प्रस्तुति)
# # #
रात
लिए है
महाकाल की
नभ सी
चलनी,
और
तारे
छिद्र
अशेष !
छनता जाये
तिमिर का
कचरा
दिन रह जाये
शेष.....
रात
लिए है
महाकाल की
नभ सी
चलनी,
और
तारे
छिद्र
अशेष !
छनता जाये
तिमिर का
कचरा
दिन रह जाये
शेष.....
Tuesday, February 16, 2010
दिन-रात : एक श्रृंखला (प्रथम प्रस्तुति)
# # #
द्वार दीये के
आया था
तिमिर,
स्वागत में
दीपक ने
लगाया था
उसको
लौ का
दैदीप्यमान टीका,
घटित हुई थी
करुणा
प्रदीप की,
रंग अमावास का
हो गया था
फीका....
द्वार दीये के
आया था
तिमिर,
स्वागत में
दीपक ने
लगाया था
उसको
लौ का
दैदीप्यमान टीका,
घटित हुई थी
करुणा
प्रदीप की,
रंग अमावास का
हो गया था
फीका....
Subscribe to:
Posts (Atom)