Friday, February 19, 2010

दिन रात : एक श्रृंखला (द्वितीय प्रस्तुति)

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रात
लिए है
महाकाल की
नभ सी
चलनी,
और
तारे
छिद्र
अशेष !
छनता जाये
तिमिर का
कचरा
दिन रह जाये
शेष.....

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