Sunday, February 28, 2010

सूखो सूखो ना निकर जावे तिव्हार होरी को..........

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गूंजे हैं
मदमस्त भँवरे
पराग भरे पूरे
मदहोश
चमन में,
बोले प्यासे चातक
गाये है कोयलिया....
रोमांचित पल्लवित
हरे उपवन में,
टेसू कुसुम हँसे
मधुवन में
यहाँ वहां सब जहाँ
रौनक बढाई के,
हिया छुई छुई
भागे
मदन मतवाला
तन के कमान ऊपर
तीर चढ़ाई के,
महकी महकी मादक
पवन बहे
मोज में
मगन सी,
दिल में जगावे
दुश्मन
तपिश
अगन सी,
मेरे मनाये
मानेगा ना
प्रीतम हटीला
ऐ ! बसंत
तेरा यार है
बड़ा बादीला....
कहदे तनिक
जाके उसे
संदेसा इस
विरहन
गौरी को,
सूखो सूखो
ना निकर जावे
तिव्हार
होरी को.....

('बादीला' का शाब्दिक अर्थ हठीला, बांका, जिद्दी या दृढ से होता है,राजस्थान में प्रेमिकाएं/संगिनियाँ प्यार से 'बादीला' 'हठीला' कहकर प्रीतम को बुलाती है )

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