Thursday, August 12, 2010

अजनबी से मुलाक़ात ना हुई होती....(आशु ग़ज़ल)

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उस अजनबी से मुलाक़ात ना हुई होती
ज़िन्दगी यूँ हमारे साथ ना हुई होती.

चाहतों के भरम ना दूर हुए होते जानम
मोहब्बत की जो असल बात ना हुई होती.

गुमां था के जानते हैं सब कुछ हम तो
सोचते हैं आज किताबात ना हुई होती.

जल के रह जाती ये फसल ज़िन्दगी की
प्यासे खेतों पे यह बरसात ना हुई होती.

रोशनी मिलती 'महक' को ना कभी भी
मुखातिब जो अँधेरी रात ना हुई होती.

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