Tuesday, August 24, 2010

विस्मृत...

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विस्मृत हुई है
छवि तुम्हारी,
हो तुम बस एक
स्वप्न निशा का,
हो गयी चेतन
सजग आज मैं,
पाकर ज्ञान
गंतव्य
दिशा का....

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