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पैगाम-ए-उल्फत हम
पहुंचाते रहे,
इलज़ाम हम पे
वो लगाते रहे,
चल दिये थे 'महक' जब हम
महफ़िल-ए-ज़िन्दगी से
किस्से ख़ास-ओ-आम
याद आते रहे......
पैगाम-ए-उल्फत हम
पहुंचाते रहे,
इलज़ाम हम पे
वो लगाते रहे,
चल दिये थे 'महक' जब हम
महफ़िल-ए-ज़िन्दगी से
किस्से ख़ास-ओ-आम
याद आते रहे......
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