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अपना कर
मार्ग विकट दुर्गम
क्यों वक्र करें
निज प्रकृति को,
चल कर
राह कंटीली पर
करें मंथर क्यों
चरण आवृति को,
अन्तरंग सहज
बहिरंग सहज
मनुज सहज
करतार सहज,
फिर
अपनाएं क्यों
वृथा असंगति को...
(विकट शब्द को यहाँ टेढ़े मेढे के अर्थ में प्रयुक्त किया है)
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