Friday, May 11, 2012

अक्स समन्दर का..


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मथा जाता 
बहर खारा 
होता है हासिल 
आबे हयात,
होठों पे दिखावा 
कीचड़ का, 
अंतस में छुपाये
अनगिनत जवाहिरात,
दिल हो उदास
रहती है मगर 
ज़ेहन में 
तवाजी,
देखा हैं तुझ में 
अक्स समंदर का 
और
कुदरत की 
जर्र: नवाजी... 

(बहर=महासागर,आबे हयात=अमृत, जवाहिरात=रतन, जेहन=मस्तिष्क,तवाजी=संतुलन, अक्स=प्रतिबिम्ब, कुदरत=प्रकृति,जर्र: नवाजी= कृपालुता)  

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