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थातियाँ लुटती रही
बातियाँ बुझती रही
होते रहे चन्द हादसे
ज़िन्दगी चलती रही.
झूठ सच लगने लगा
मन मेरा भगने लगा
किस पर क्या हावी हुआ
अनचाहा जगने लगा.
रुक के देखा था मैं ने
क्या से क्या यह हो गया
मुझ से चेतन मानव का
सब कुछ क्यों ऐसे खो गया.
झाँका जो मैंने दर्पण में
खुद से ही घबराया था
मैं नहीं वहां जो दिख रहा
हा ! किस से मैं टकराया था.
गफ़लत ने घेरा था मुझको
मैं जश्न मनाता डूबा था
प्यास रूहानी बुझी नहीं
उस झूठे दरिया से ऊबा था.
जब जागा था मैंने जाना
वो नहीं रास्ता मेरा था
भटका था मैं जिन गलियों में
नहीं कोई वास्ता मेरा था.
चोट ऊपरी ताज़ा थी
उसने मरहम लगा दिया
रोशन हो गया जहाँ मेरा
रस्ता उसने दिखा दिया.
लौटा हूँ जानिब खुद के मैं
खोया सुकूं फिर पाया है
तपते जलते इस जीवन में
शीतल सावन घिर आया है.
थातियाँ लुटती रही
बातियाँ बुझती रही
होते रहे चन्द हादसे
ज़िन्दगी चलती रही.
झूठ सच लगने लगा
मन मेरा भगने लगा
किस पर क्या हावी हुआ
अनचाहा जगने लगा.
रुक के देखा था मैं ने
क्या से क्या यह हो गया
मुझ से चेतन मानव का
सब कुछ क्यों ऐसे खो गया.
झाँका जो मैंने दर्पण में
खुद से ही घबराया था
मैं नहीं वहां जो दिख रहा
हा ! किस से मैं टकराया था.
गफ़लत ने घेरा था मुझको
मैं जश्न मनाता डूबा था
प्यास रूहानी बुझी नहीं
उस झूठे दरिया से ऊबा था.
जब जागा था मैंने जाना
वो नहीं रास्ता मेरा था
भटका था मैं जिन गलियों में
नहीं कोई वास्ता मेरा था.
चोट ऊपरी ताज़ा थी
उसने मरहम लगा दिया
रोशन हो गया जहाँ मेरा
रस्ता उसने दिखा दिया.
लौटा हूँ जानिब खुद के मैं
खोया सुकूं फिर पाया है
तपते जलते इस जीवन में
शीतल सावन घिर आया है.
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