Tuesday, August 14, 2012

पट मंदिर का खुला हुआ...


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देखो ना 
कब कैसे 
क्या हुआ,
रूप और मेधा 
देख उसकी, 
तिक्त 
सागर सुरा हुआ...

डगमगा रही 
नैय्या 
मतवाली,
पीया है सागर 
सारा इसने, 
देखो तभी 
नशा हुआ ..

जग गये प्राण 
शुष्क वृक्षों में ,
अप्रतिम दर्शन  
जिस क्षण, 
मनमोहना 
सुदर्शन का हुआ...

सीप तलाशती 
मोती स्वाति में, 
तृप्ति हेतु 
तृषाकुल की,  
जलधि  स्वयं  
व्याकुल  हुआ...

खड़ी थी मैं 
अधखुले 
वातायन पर, 
सम्मुख मेरे 
सुन री सखी 
नयनों का 
जगराता हुआ....

विरहन देवी
प्रतीक्षारत
विकल, 
दर्शन स्पर्शन को
अति आकुल ,
पट मंदिर का
खुला हुआ...



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