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लुटाता
हरियाली
दुनियां को
बादल,
मगर
कितना बंजर
है खुद
आब से भरा
बादल....
सागर है
दया का
हसास
बादल,
मगर
कुसंग दरिया का
बहा देता है
मेरा घर
बादल....
हाथ उठे थे
बारिश की
दुआओं की
खातिर,
बरसा गया
चंद संग
बादल.....
छील गया
दिल के
दरो दीवारों को,
राहे आँखों से
बरस गया
बादल.....
लगाये
बैठे थे उम्मीद
सुकून-ओ-ठंडक की,
आग
सावन में भी
लगा गया
बादल...
हसास=भावुक.
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