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अनकिये
अपराधों से
करके आरोपित,
कपट से
वधालय मुझ को
लाया गया..
झुक जाती है
फलों लदी शाखें,
मुझ पुष्पविहीन को
बीच उद्यान
बलि वेदी पर
झुकाया गया..
ये चिन्ह है मुझ
विरहिणी के
कृन्दन के,
कलंक मुझ पर
प्राणहीन दीवार के
आलिंगन का
लगाया गया....
लाये हैं
टुकड़ों टुकड़ों में
मेरी देह को
सम्मुख दर्पण के,
तुड़ा मुड़ा बिम्ब मेरा
मुझ को ही
दिखाया गया...
फूटी थी कोंपलें
कठोर पत्थरों में ,
वासना है ये
प्रेम नहीं
कहकर मुझे
भरमाया गया...
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