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नाम ले कर
सांवरे का ,
क्यूँ करते बदनाम
मोहब्बत को,
रूहानी कह देते हम
हर जिस्मानी-ओ-वक्ती
सोहबत को...
माखन की चोरी,
वो हरण पैरहन का,
वो इश्क राधारानी से
वो वरण रुकमन का,
बृज की वो रासलीला,
महाभारत की
अचूक रणनीति,
अर्जुन का वो सारथि
द्रौपदी से निभाई प्रीति,
देवकी नंदन था वो
के सुत जसोदा का,
यादवों की तबाही
वो किस्सा द्वारिका का,
हर लीला में
है देखो
फलसफा समाया,
सूक्ष्म को ना
देखा हम ने
स्थूल ने भरमाया..
मालिक की
हरक़तों में
पोशीदा इल्म
दो जहाँ का,
हम कुएं के मेंढकों को
हो गवारा ये कहाँ का,
औढ कर मुखौटे
करे नाटक इबादत का,
लफ़्ज़ों में छुपा छुपा है
नमूना यक ज़हालत का...
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