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दीये की
स्वर्णिम लौ
सपेरे की बीन,
किरणों की
धुन पर
नाचती है
रात नागिन,
तारों से
अंडे
संभालती है
माँ रजनी,
पौ फटे
छोड़ देती
कैंचुली अपनी,
चमक कर
सूरज की
रोशनी में
बन जाती है जो
दमकता दिन,
ज्योतिषी
विज्ञानी
थक जाते हैं
घटी-पल-निमिष
गिन गिन....
Monday, March 1, 2010
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