Monday, December 5, 2011

गुलाब और पारिजात


# # #
गुलाब !
क्यों है
आसक्ति तुम्हे
इस जिस्म से,
मुरझाने तक,
नहीं होते हो
आज़ाद तुम
ममत्व के
एहसास से,
देखो ना
पारिजात को
खिला और
सहज ही
झर गया...

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