Wednesday, December 21, 2011

ताज़गी सपनों की...

# # #
बरहना है ना
अफताब,
ढकी है
बिजलिया
हिजाब में,
आलसी है ना
समंदर
देखी है
रवानी नदियों में ,
कितना बासी है ना
सच,
हुई है महसूस
ताज़गी
सपनों में ...

No comments:

Post a Comment