Sunday, December 25, 2011

काबिले-ए-गौर..

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ज़मीर पर
कर लिया है
खड़ा तुम ने
हिमाला
जमानासाज़ अलफ़ाज़ का,
नहीं निकलेगी
उस से गंगा
रूहानी
एहसासात की,
जो मिला देगी
तुझ को
उस समंदर से,
हिस्स जिसका
बन जाता है
बादल सिफ़र में
बरसता है जो
बन कर
आबे हयात
सूखी प्यासी
तड़फती
ज़मीं पर !
(जमानासाज़=धूर्त/cunning/opportunist. हिस्स=संवेदना)

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