(विनेश सर की अनेकांत सीरीज में मेरा एक नन्हा सा योगदान.)
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नहीं तोड़ेने
नहीं गलाने
जेवर पुराने
गढ़ने को
कुछ नए गहने,
नहीं खोदनी है
जुनूने इन्कलाब में
नींव
किसी मौजूदा
मुकम्मल सोच की,
बनाने को
चंद नए पैमाने,
अपनाना है बस
एक बाहोश नजरिया
करने को आज़ाद
सच को
सदियों से घेरे हुए
दायरों से,
और
यह तवाजुन-ए- नज़र है
' अनेकान्त ' !
(तवाजुन=संतुलन)
Thursday, March 8, 2012
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