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सुनकर
दस्तक
नहीं खोला करते
तुरंत
दरवाजे को...
पूछा करते हैं
जांचा करते हैं
कौन है खड़ा,
देख कर मेजिक आई से
लगा कर सेफ्टी चैन
घुमाते हैं लेच को
सुन कर
पहचानी सी आवाज़
और
जान परख कर
निरापद आगंतुक को...
किन्तु यदि ना हो
चेतना तीव्र
चिंतन गहरा
स्पष्ट दृष्टि
घुस जाती है
उद्दंड वासनाएं
समझ कर
कोई धर्मशाला
हमारी
मासूम आँखों को...
Saturday, March 24, 2012
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