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कहा था हंसी ने :
अरे अंसुआ !
कैसा है रे
स्वभाव तेरा
आते हो जब भी
छलकते हो
चुपके से
और
जाते हो ढलक
बिन बोले...
देखो ना !
एक मैं हूँ
उभरती हूँ जब भी
लगाती हूँ फेरा
संग अपनी गूंज के
ना जाने
कितने कितने
कानों का ...
सुन रहा था
बात यह
नाक
पड़ोसी दोनों का,
लगा था कहने
होले से
अंत-सयाना,
अरे ! फर्क इतना ही तो है
उच्च और निम्न
कुल की संतति में...
Friday, March 16, 2012
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