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चाँद निकलाऔर
छुप गया था
बादलों में,
ख्वाहिशों से घिरी
रात को
इंतज़ार था
सहर का,
महताब
ना सही
आफताब
तो भर देगा
उजालों की
सौगातों से
बेवक्त धुंधली हुई
जिंदगी को.....
ठहर गयी थी,
ठिठक गयी थी
मैं,
देख रही थी
रुक रुक कर
खुद को,
होने लगा था
एहसास
वो तो बन्द आँखों का
सपना था,
खुली आँखों से देखा
जिसको
क्या बस
वो ही
अपना था ?
सपने होतें है
एक हकीकत,
हकीकत से भी
बढ़ कर
एक हकीकत,
तुम बदल देते हो
दुनियावी हकीकत को,
तोड़ और मरोड़ देते हो
उसको,
मगर सपने
महज सपने होते हैं
रहतें है वे वैसे ही
जैसे कि वो होतें है....
कुछ भी कहो
कुछ भी सहो
सपनो को रहने दो
जिंदगी में,
उन्ही से निकली
खुशबू
महकाती है
हकीकतों को...
जब भी होती हूँ उदास
होते हैं सपने
संगी मेरे,
नुमायिंदे हकीकतों के
करतें है परेशान
जब जब मुझ को
बनते है सपने
सहारे मेरे,
तुम्हारी शायद तुम जानो
मैं
बन कर पुजारन सपनो की
सीख रही हूँ
जीना हकीक़तों को.....
देखती हूँ
खुली आँखों से
वही सपना
जो मुरझा गया था
कैद होकर
बन्द आँखों में....
सच मानो...
अब
यह जिंदगी
पुरजोश होकर
खिला रही है
जिला रही है
मेरे मन मीत
सपनो को....
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