Tuesday, November 23, 2010

लास वेगास.....

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आह !
कैसी रोशनी है यह ?
हो गयी है दिन
रात यहाँ की,
सब कुछ तो
चमक रहा है
उजला उजला,
चलो किसी
केसिनो में
करलें याद
कौरवों-पांडवों को,
मुफ्त की शराब,
अधनंगी
नाचनेवाली के
अंग्रेजी ठुमके,
खुशी चंद डॉलर जीतने की
झुंझलाहट हारने की
और
कभी कभी निस्पृहता
जो रूहानी नहीं
औलाद है बोरियत की
हताशा की,
सडकों पर रंगीनियों का
फेशन परेड,
असल की नक़ल,
चाहे वेनिस शहर हो
ताजमहल या
कुछ और,
शानदार होटल
और
अजूबे
तरह तरह के,
पैबंद है
मखमल के
जुए की टाट पर,
पहले से सोचे
'एहसास' कहलाते हैं
'एक्साईटमेंट'
सब कुछ है
'टेम्परेरी' यहाँ
'नथिंग' 'परमानेंट',
करुँगी फिर भी
हर पल
साथ तेरे एंज्वाय,
मुझे भी
लगता है अच्छा
यह थोडा सा
बदलाव...

पूछते हैं
इस उजाले से,
क्या खिला सकते हो फूल,
जगा सकते हो
सोये हुए
अलसाये हुए बदन
जो बहा कर पसीना
करेंगे तामीर,
बना सकते हो
भाप दरिया-समंदर के
पानी को,
जो बरसेंगे
बन कर बादल,
पिघला सकते हो
बर्फ पहाड़ों की,
बदल सकते हो
रुख हवा का,
कर सकते हो
अंकुरित
बीजों को....?

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