खुली आँखों के आईने.....
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मुस्कायी थी
बिजली
रोया था बादल
बे-इन्तेहा,
जागा था
चाँद
सोया था
आसमां...
जस की तस थी
माटी
चल रहा था
गागर,
तैरी थी
लहर
डूबा था
सागर.....
बन्द आँखों में
पाले थे सपने
थोड़े सच
थोड़े बे-मायने
दिखा रहे थे
अक्स
खुली आँखों के
आईने.....
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