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बन कर मेहमां
आया है
मेरे घर
गहरा सा
एक अँधेरा,
ना कोई मह
ना है कोई सितारा,
पहचानी है
सूरत उसकी
रंग से महज़,
करूँ कैसे
ऐ मौला !
मैं उसको
अब गवारा.....
बन कर मेहमां
आया है
मेरे घर
गहरा सा
एक अँधेरा,
ना कोई मह
ना है कोई सितारा,
पहचानी है
सूरत उसकी
रंग से महज़,
करूँ कैसे
ऐ मौला !
मैं उसको
अब गवारा.....
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