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सदा उश्शाक हुई जाती है
अदा कज्जाक हुई जाती है.
जिस्म बेबाक हुआ जाता है
रूह सफ्फाक हुई जाती है.
बरपा है खामोशियाँ हर सू
आँख नमनाक हुई जाती है.
तुज़ुर्बों का असर है गमे दिल
जीस्त इद्राक हुई जाती है.
तेरे आने के ना ख़ुशी ओ ग़म
फिजा अख्लाक हुई जाती है.
मंजिलें ना हो मयस्सर मुझ को
राह इम्लाक हुई जाती है.
किस बुत को करें हम सजदा
ख़ाक रज्जाक हुई जाती है.
बेपनाह इश्क किया थ तुम से
तू भी गुस्ताख हुई जाती है.
कैसे सुलझे के पहेली है कठिन
जुल्फ पेचाक हुई जाती है.
(उश्शाक=प्रेमी,कज्जाक=प्रेयसी,सफ्फाक=निष्ठुर, नमनाक=सजल, जीस्त=ज़िन्दाही, इद्राक=समझबूझ, अख्लाक=शिष्टाचार, मयस्सर =उपलब्ध,इम्लाक=जायदाद.रज्जाक=ईश्वर, पेचाक=बल खाना.)
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