मेले (आशु रचना)
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जीवन की राहों में
हम ने
देखे थे
बहुतेरे मेले,
कभी गुरु हुआ
करते थे हम भी
बने कभी थे
हम भी चेले.....
रखा किसी ने
हमें जकड कर
चला था कोई
हाथ पकड़ कर
नाम प्यार का
दे दे कर यूँ
कितने नाते
हम ने झेले......
चाहत राहत
बन ना सकी थी,
कभी खुली वो
कभी ढकी थी
हमने भी
रिश्तों के भ्रंम में
खेल ना जाने
कितने खेले......
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