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अज़ीम समंदर
गहरा पानी
अकूत कुव्वत
संजीदा सा सब कुछ...
अदना सा कंकर
मिटटी का जिस्म
बेडौल और बेहूदा
नाकुछ सा सब कुछ...
छपाक से गिरा
हल्की सी चोट
डोल गया था
सब कुछ.....
इतना गुस्सा
इतनी हलचल
तरंगों के गोले
लौट आते थे
छूकर दूर किनारों को..
कैसी मजबूरी
हज़ार हाथ वाला
समंदर
नहीं उलीच पाया
मगर
एक नन्हे से कंकर को...
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