Friday, March 12, 2010

दिन रात (१८) : चांदनी की ठंडाई

(होली के अवसर पर लिखी थी, पोस्ट नहीं हो पाई....आज शेयर कर रही हूँ.)

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रात की सिल पर
चाँद के लोढे से
अँधेरे की भंग
(और)
बादाम तारों की
हुई थी
पिसाई,
मदमस्त
वक़्त रसिये ने
मौज से
घोटी थी
चांदनी की
ठंडाई...

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