Friday, March 26, 2010

अश्क जो टपके पलकों से...

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अश्क जो
टपके
पलकों से
ढल गये वो
संगरेज़ों में,
काम तेरे
आये थे वो
हम को ही
सताने में...

आखरी
टीस जो
दी थी
तूने हम को,
मजबूर थे
हम
कितने
अनकही बातें
जुबाँ पे
लाने में.........

कर लिए थे
हाथ
काँटों से
जख्मी
हम ने,
एक
फूल को
बेणी में
अपनी
सजाने में...

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