Sunday, March 14, 2010

दिनरात (२०) : डूबना तैरना

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गहरी रात
सांवली जमना..
दिवस
गंगा का पानी,
प्रेम भंवर
डूबी थी
मीरा
तिरा
कबीरा ज्ञानी....

[स्वयं/परमात्मा से जुड़ने, एकीकृत होने के क्रम में,डूबना और तैरना दोनों ही शुभ है....सापेक्ष है...यह कह रही है यह कविता]

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