Sunday, March 21, 2010

मनुहार....

# # #
नहीं
समझते
पीड़ा मेरी,
महज़
उपरी
बातें तेरी,
क्या हूँ
मैं
बस एक
खिलौना,
दबे
बटन
रुक जाये
रोना,
मुस्कानों को
बो कर
देखो,
मुझ में
खुद को
खो कर
देखो,
सुर
आदेश के
और है
होते,
दौर
मनुहार के
कुछ
और है
होते,
नहीं चाहिए
मुझ को
मेला,
कर दो
एहसान
मोहे
छोड़ अकेला.......

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