Saturday, March 27, 2010

पराया है.....(राजस्थानी/हिन्दुस्तानी)


पूर्व कविता की श्रृंखला में एक और प्रयास सप्रेम प्रस्तुत है....

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परायो है....(राजस्थानी)

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जीवण री
आरसी मं
चितराम ओं
परायो है,
इण जमीन र
उपरलो ओं
आभलो
परायो है....

कुण किण र
हिन्व्ड़े बसे
कुण किण री
आँख्यां मं है,
एक संसार
आपणो है
बीजो संसार
परायो है....

चाहवे कित्ती ही
सोरप है
चाहवे कित्ती
मौजा मन री,
म्हारी गुवाड़ी स्यूं
दूर रह्याँ
मेहल हर एक
परायो है....

जद स्यूं
न्याव
डूबी म्हारी
म्हे बैठ्या
एक ज़ज़ीरे पर,
दूर दूर ताईं
फैल्योड़ो ओं
समदरियो
परायो है....

इण राम धणक स
सुपण मं
रुत हरेक तो
म्हारी ही,
आँख खुली जद
के देख्यो ?
हरेक मिनख
परायो है...

पराया है........(हिन्दुस्तानी)
# # #
जीवन-दर्पण के
सीने में
बिम्ब प्रत्येक
पराया है,
धरा सुहानी
अपनी है पर
नील गगन
पराया है...

कौन किसी के
ह्रदय बसा
कौन स्थिर
किन नयनन में,
यहाँ एक
संसार हमारा है,
दूजा संसार
पराया है....

चाहे कितनी ही
सुख़-सुविधा,
चाहे जितनी ही
मौज भी हो,
अपनी कुटियाँ से
दूर रहूँ तो
प्रत्येक महल
पराया है....

नौका डूबी
जब से अपनी
बैठी हूँ
द्वीप निर्जन पर मैं,
अगण्य सा
विस्तार लिए
सागर विशाल
पराया है....

इन्द्रधनुष से
सपने में
ऋतु प्रत्येक तो
अपनी थी,
आँख खुली तो
यह पाया
इन्सां हर एक
पराया है....

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