Wednesday, March 10, 2010

मिलन......(आशु कविता)

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आई है
घड़ी
महामिलन की,
शैय्या पर है
समर्पित
मृत्यु :
प्रेयसी
जीवन की.....

सन्देश लिए
महा विश्राम का
आई
पुनीत बेला,
पावन
परिधान
सज्जित
हर्षित
अद्य
मिलन मेला....

चले जाने का
ना शोक है
ना चाह
रह जाने की,
तत्परता
आत्मा को है
असीम संग
मिल जाने की .....

दे रहा है
जग
अश्रुपूरित
विदाई,
हो रही
सद्कर्मों की
मानो यूँ कोई
भरपाई....

प्राप्य है
आनन्द
अतिरेक
आज इस
चेतन को,
हो रहा
महाप्रयाण मेरा
ले हाथ
निज केतन को....

म्रत्यु महोत्सव
पालित है
हर्ष एवं
उल्लास से,
घटित हुई है
मुक्ति मेरी
श्वास
और
निश्वास से.....

पञ्च भौतिक
देह का
पञ्च तत्त्वों में
विलय हुआ,
आत्मा का
स्वरुप यूँ
निर्मल
निरामय हुआ....

(केतन=ध्वज/पताका/चिन्ह, अद्य=आज/अभी, अतिरेक=अधिक्य, निरामय=निष्कलंक/निर्दोष)

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