Sunday, March 7, 2010

महिला दिवस पर....

नर-नारी के ज़िन्दगी में रोल, उनमें बराबरी हो उसकी क्या परिभाषा हो, दोनों एक दूसरे से अलग है बयोलोजिकली और साय्कोलोजिकली इसलिए बराबरी के नाम पर औरतों का मर्दों की नक़ल करना उन्ही के वुजूद के खिलाफ जाता है, रूहानी तौर पर औरत कैसे बेहतर है मर्द से, बरसों तक पुरुषप्रधान समाज ने कैसे जाने अनजाने नारी का शोषण किया, प्रतिक्रियास्वरूप आज की नारी नारी-स्वतंत्रता का परचम लिए कैसे गुमराह हो रही है और नारी के 'एसेंस' को खो देने की जोखिम ले रही है, एक अच्छे भौतिक और अध्यात्मिक जीवन के लिए नर नारी कैसे एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं, विवाह एक व्यवस्था है या प्राकृतिक अनिवार्यता, प्रत्येक इन्सान में नर तत्व और नारी तत्व विद्यमान है इसीलिए हमारी तहज़ीब ने अर्धनारीश्वर की बात कही है, आदिम युग... वैदिक युग.... तदुपरांत का समय और आज..नारी की क्या अवस्था रही है समाज में, हिंदुस्तान और दुनिया के परिपेक्ष्य में नारी, औरतों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण कितना हितकारी है औरत के लिए...बहुत सी बातें हाँ..बहुत से सवाल है जिन पर सोच विचार... विमर्श किया जा सकता है. पश्चिम से उधार लिए 'दिनों' याने फादर्स डे, मदर्स दे, वेलेंतायिन डे, फ्रेंड्स डे, इत्यादि में एक है 'वुमेन'स डे' या 'महिला दिवस' जिसकी सार्थकता हमारे लिए बस इतनी ही है की भूले बिसरे इस सवालों पर सोच जाये, आज और बाकी के ३६४ दिन नारी की सही पहचान करने/कराने में लगा जाये.
एक रचना इसी सन्दर्भ में पेश की है 'जमा हुआ ख्वाब'. एक और रचना जो 'अन्तरंग' और 'अध्यात्मिकता' से ज्यादा जुडी है पेश कर रही हूँ.

________________________________________

प्रथम बिंदु शुभारम्भ का ......
# # #
प्रतीक्षा में है
अब भी कितनी
राधिकाएं यहाँ
तुम हो कितनी
सौभाग्यशाली
मिल गया है
तुझ को
मोहन तुम्हारा .....

मिल गयी है
मुरली की तान,
मिल गयी है
राग रागिनियाँ,
मिल गया है
दिव्य संगीत,
मिल गया है
आनन्द बोध,
मिल गयी है
प्रसन्नता,
मिल गया है
जीवन से जीवन.....

किन्तु
यह तो है
यात्रा के
शुभारम्भ का
मात्र
प्रथम बिंदु,
केवल
प्रथम बिंदु.....






No comments:

Post a Comment