Sunday, October 11, 2009

अस्तित्व (एक आशु सृजन)

...
'होने' को साबित करने में
हो जाता है घटित
'कुछ और हो जाना'
भ्रम जनित गंतव्य कि यात्रा में
संभव नहीं कुछ भी पाना,
किसी ने मूँद ली जो आँख
सूर्यास्त ना हुआ
मिथ्या दुन्दुभी विजय की
बजायी किसी ने
कोई परास्त ना हुआ,
'अहम्' की लड़ाई को
दे देते हैं नाम हम
'अस्तित्व' के संघर्ष का
हो जातें है दूर स्वयं से
कर के अवरुद्ध
मार्ग स्व -उत्कर्ष का,
सापेक्ष है जीवन के पहलू
निरपेक्ष उनको करने के
दुस्साहस में
होता है नाश
अंतर के आनन्द और हर्ष का......

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