Sunday, January 24, 2010

स्पर्श ( दो नन्ही नज्में )

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(१)

नज़रों को
देखा नज़रों ने
मंज़र थे
कुछ पहचाने
मीत बने
जीवन भर के वो
कल तक थे जो
अनजाने.......

नयनो से नयनें
मिलने से बस
हुआ यही था
निष्कर्ष
दिव्य हुआ था
चक्षु से
चक्षु का
यह मादक
गहन स्पर्श.....

(२)

छूकर मेरे दिल को
किया तूने
क्या इशारा
बदला यह मौसम
लागे प्यारा जग सारा...

बिन कहे
बिन बोले
हुआ था
ह्रदय का
हर्दय से
मौन विमर्श
सब कुछ
नव्य भया था
साजन
पाकर तेरा
गहन स्पर्श .....

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